अफीम नीति: आगामी अफीम नीति 2022 में अफीम किसानों को राहत पहुंचाने का प्रयास होना चाहिए। अफीम नीति से किसानों के हितों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए। इसके साथ ही किसानों के पुराने कटे हुए पट्टे भी बहाल होने चाहिए। यह बात चित्ताैड़गढ़ सांसद सीपी जोशी ने आगामी वर्ष 2022-23 के लिए जारी होने वाली अफीम नीति के विभिन्न सुझावों के लिए केन्द्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी की अध्यक्षता में आयोजित बैठक के दौरान कही। इसके अलावा सांसद सुधीर गुप्ता द्वारा भी किसानों की मांगों को ध्यान में रखते हुए वित्त मंत्रालय ने 26 मांगों को लेकर ज्ञापन सौंपा गया। अफीम किसानों को उम्मीद है कि आगामी अफीम नीति में सरकार द्वारा बदलाव किया जाएगा।
अफीम नीति: सांसद द्वारा जानकारी देते हुए बताया गया है कि अफीम किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए क्षेत्र के किसानों के द्वारा दिए सुझावों का समावेश आगामी अफीम नीति (2022-23) में करने की आवश्यकता है। अफीम खेती में अनियमितताओं में संबधित अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई हो और इससे जुड़े सभी लोगों की जांच करवाकर उनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाए। अफीम किसानों को अफीम खेती में लागत की अपेक्षा काफी कम दाम मिल रहें हैं। अतः आगामी अफीम नीति में अफीम फसल का मूल्य बढ़ाया जाए। वर्ष 1998 से अभी तक के सभी प्रकार के पट्टे घटिया मार्फिन से हो या कम औसत से हो या अन्य किसी प्रकार से कटे हों उन्हें अफीम नीति (2022-23) में बहाल किया जाए। अफीम नीति (2022-23) में सभी अफीम किसानों को अफीम का रकबा यानि क्षेत्रफल को समान रूप से बराबर आवंटित किया जाए।
अफीम नीति (2022-23): अफीम नीति में दैनिक तौल को बन्द कर दिया जाना चाहिए क्योंकि अफीम निकालते समय अफीम में पानी की मात्रा होती है। समय के साथ ही पानी सुखता रहता हैं एवं अफीम का वजन कम होता जाता है। जिन किसानों को अफीम लाईसेंस के लिए पात्र माना गया है उन किसानों को विभाग के द्वारा लाईसेंस पात्रता की सूचना लिखित में दी जाए। किसान यदि अफीम फसल बोना नहीं चाहता है तो यह किसान से लिखित में लिया जाए। अफीम तौल केन्द्र पर ही अफीम जांच का अंतिम परिणाम प्राप्त हो सके ऐसी प्रक्रिया अफीम नीति 2022 में अपनाई जाए। अफीम फसल बुवाई के 45 दिनों के अन्दर गिरदावरी कार्य पूर्ण कर लिया जाए। विगत वर्ष में जिन किसानों को लाइसेंस तो मिल गए लेकिन किसी कारणवश फसल बो नहीं पाए, ऐसे किसान उसी वर्ष फसल बोने की शर्त के कारण वंचित रह गए, उन्हें भी अफीम नीति (2022-23) में फसल बोने की अनुमति मिले। बैठक में केन्द्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी के साथ झालावाड़-बांरा सांसद दुष्यन्त सिंह, मन्दसौर-नीमच सांसद सुधीर गुप्ता, शाहजहांपुर सांसद अरूण कुमार सागर, रंजन पाण्डेय, नारकोटिक्स कमिश्नर राजेश फतेसिंह ढाबरे भी उपस्थित रहे।

अफीम नीति: नपाई, कच्चे तौल के सिस्टम को पारदर्शी बनाने की मांग 1998-2003 तक वालों को पूर्व में सिर्फ 1 किग्रा की छूट दी गयी थी, इनको 5 किग्रा की छूट प्रदान की जाए। जिन किसानों की औसत में 5 वर्ष पूरे नही हो रहे हैं उनको प्रतिवर्ष औसत में छुट मिले। अफीम फसल की नपाई, कच्चे तौल, तौल एवं फैक्ट्री जांच के सिस्टम को पारदर्शी बनाया जाए। प्रत्येक किसान के अफीम लाइसेंस को दो भुखण्डो में बोने का नियम जो पिछले साल के अलावा सभी विगत वर्षों से चला आ रहा है, उसे पुनः लागू करवाया जाए।
अफीम नीति: किसान की मृत्यु के उपरान्त नामांतरण के बाद न्यूनतम क्षेत्र के लाईसेंस की बजाय उसकी उपज(योग्यता) के अनुसार अफीम लाईसेंस जारी करवाया जाए। वर्ष 2001 के पश्चात लगातार 3 वर्ष लाइसेंस मिलने पर फसल हंकवाने वाले काश्तकार को पुनः अवसर मिले। लाइसेंस मिलने की योग्यता में न्यूनतम मार्फिन को 3.5 किग्रा औसत रखा जाए। लाईसेंस प्राप्त किसान को पानी की कमी के कारण अन्य गांव में फसल बोने की छूट प्रदान करवायी जाए।