गौरवशाली है मंदसौर की प्राचीन धार्मिक-आध्यात्मिक परंपरा : Mandsaur News

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मंदसौर का मन -बंशीलाल टांक, धर्म दर्शन के विद्वान, जिलाध्यक्ष पतंजलि योग संस्थान

तीर्थ स्थल हो अथवा नगर, उसकी विशिष्ट पहचान जगह की प्राचीनता और सुनहरे अतीत से होती हैं। धार्मिक और अध्यात्मिक परंपराओं से समृद्ध मंदसौर (दशपुर) की विविध विशिष्ट विशेषताओं का गौरवमयी इतिहास रहा है। धार्मिक, पुरातात्विक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, राजनीतिक, सामाजिक परंपराओं में मालवा क्षेत्र का हृदय स्थल होने के साथ ही दशकों से सांप्रदायिक सौहार्द्र-समभाव में प्रेरणादायक विशिष्ट पहचान बनाए हुए है। अन्य विषयों में नहीं जाते हुए यहां हमें सर्वप्रथम इस नगर के इतिहास में गौरवशाली दर्जा दिलाने में यहां की प्राचीन धार्मिक-अध्यात्मिक परंपरा की अहम भूमिका रही हैं। किसी भी नगर की धार्मिक और अध्यात्मिक विरासत को युगो-युगों तक कायम रखने में वहां के धर्मस्थल मंदिर-मठ तत्पश्चात आश्रम वितरागी संत महापुरुष, गृहस्थ संत, विद्वतजन होते हैं। वैसे तो शहर में सैकड़ों मंदिर है वर्तमान में प्रत्येक समाज एवं व्यक्तिगत तौर पर भी मंदिर है परंतु प्राचीन काल से दर्शनीय वैष्णव मंदिरों में जीवागंज स्थित पुष्टीमार्गीय वल्लभ संप्रदाय सेवित गोवर्धननाथ (श्रीजी) मंदिर, जगदीश मंदिर, रिषियानंद कुटिया, शिवना तट पर कागदीपुरा स्थित सिद्धी विनायक गणेश मंदिर, जनकूपुरा स्थित (महाराष्ट्रीय संप्रदाय) लक्ष्‌मीनारायण मंदिर, द्विमुखी चिंताहरण गणपति मंदिर, श्री नरसिंह मंदिर की निर्माण शैली ही बताती हैं कि यह अतिप्राचीन मंदिर है। इनकी प्रतिष्ठापना का इतिहास भी पृथक-पृथक संदर्भों में विशेष महत्व रखता है। महादेव मंदिर, खिलचीपुरा स्थित श्री कुबेर मंदिर, पुरातत्व संग्रहालय के समीप और चंद्रपुरा में श्री ओखाबावजी मंदिर, रामानुजकोट स्थित मंदिर, जगन्नााथ मंदिर शैव मंदिरों में अतिप्राचीन श्री जागेश्वर मंदिर प्रमुख है। विश्व प्रसिद्ध विशाल अष्टमूर्ति भगवान श्री पशुपतिनाथ का प्राकट्य, उद्भव शिवना नदी के गर्भ से हुआ हैं। महादेव घाट पर ब्रह्मलीन स्वामी श्री प्रत्यक्षानंदजी के करकमलों से मूर्ति की प्रतिष्ठापना 27 नवंबर 1961 को हुई। यह निश्चित है कि यह मूर्ति पूर्व में शिवना तट पर स्थित मंदिर में रही होगी जो अतिप्राचीन रहा होगा। इसके अवशेष आदि शोध का विषय है। आश्रमों की श्रृंखला में शिवना तट गजेंद्र घाट के समीप ब्रह्मानंद आश्रम, मुक्तिधाम पर गुप्तानंद आश्रम, मेनपुरिया स्थित चैतन्य आश्रम, तेलिया तालाब स्थित श्री ऋषियानंद आश्रम, रामघाट स्थित विरक्त आश्रम खानपुरा, ब्रह्म चैतन्य आश्रम सभी वह जगह हैं जहां महापुरूषों के पावन नामों से आश्रम प्रतिष्ठित हुए। इन महापुरुषों ने जो धर्म की गंगा प्रवाहित की उसका कल-कल निनाद (सत्संग) कानों को आज भी धन्य हुए है। जिन वितराग सन्यासी महापुरूषों से यह दशपुर मन्दसौर नगर धन्य हुआ है उनमें पूज्य स्वामी सर्वश्री ब्रह्मानंदजी, ऋषियानंदजी, केशवानंदजी, नित्यानंदजी, अष्टावक्रजी, चैतन्यदेवजी, गुप्तानंदजी, प्रत्यक्षानंदजी, केशवस्वरूपजी, अनंतप्रकाशजी, ज्ञानप्रकाशजी, जगन्नााथजी, शांतानंदजी, स्वतःप्रकाशजी, ज्वालाप्रकाशजी, नित्यानंदजी, टेऊंरामजी, वामदेवजी, बोधप्रकाशजी, जगद्गुरू शंकराचार्य सत्यमित्रानंदजी, जगदगुरू शंकराचार्य स्वा मी दिव्यानंदजी, स्वामी भागवतानंदजी, नित्यानंदजी डोरानावाले, वर्तमान भानपुरा पीठाधीश्वर जगद्गुरू ज्ञानानंदजी।

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भगवा-गेरूवा वस्त्र धारण नहीं किया हो परंतु फिर भी श्वेत वस्त्र धारण कर गृहस्थाश्रम को धन्य करते हुए जिन्होंने अध्यात्म को नगर ही नहीं विदेशों में भी प्रचार-प्रसारित कर शहर के नाम को गौरवान्वित किया उनमें पूज्यम पं. रूद्रदेव त्रिपाठी, गोलोकवासी पं. मदनलाल जोशी, पं. मधुसूदन आचार्य आदि शामिल हैं। यह वे गृहस्थ महापुरूष है जिन्होंने अध्यात्म को ऊंचाईयां प्रदान करने के साथ ही वेदवाणी संस्कृत, हिंदी साहित्य सेवा में भी पीछे नहीं रहे। गोलोकवासी पं. मदनलालजी जोशी के सनातन हिंदू धर्मावलंबी जगद्गुरू शंकराचार्य से लेकर महामंडलेश्वर सभी हिंदू संप्रदाय आचार्यों से परस्पर सत्संग भगवतचर्चा का गहरा संबंध रहकर संवाद होते थे उतना ही आपका अन्य संप्रदाय धर्मावलंबी जैनाचार्यों से भी सम्मान प्रतिष्ठा मिलती थी। व्याोस पीठ पर निरंतर 8 घंटे तक बिना संगीत आदि के भागवत कथामृत कराना अब कहां रहा

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