अभी कुछ दिन पहले ही शिवना नदी उफान पर थी, पर इसका कुछ खास फायदा नहीं हुआ शिवना नदी की गंदगी ज्यों की त्यों जमी हुई है, परंतु इसके ऊपर एक और खतरा अभी सामने आ रहा है जिससे नदी का प्रदूषण बढ़ने का खतरा है वह खतरा है कि नदी का बहाव कम होते ही यहां पर आम नागरिकों द्वारा धोबी घाट बना दिया गया है, एवं विशेषज्ञों की बात माने तो जलकुंभी जो शिव ना ही नहीं देश के सभी जल स्त्रोतों की की एक अहम समस्या बन चुकी है इसे विशेषज्ञ द्वारा यमराज तक का दर्जा दिया जा चुका है, अगर इसी पर प्रशासन की बात करें तो प्रशासन द्वारा इस पर कुछ खास एक्शन नहीं लिया गया है, परंतु एक्शन के नाम पर जलकुंभी को निकालकर नदी के ही साइड में रख दिया है, जिससे कि इसके नदी में वापस आने का खतरा बना रहे, वहीं दूसरी ओर इस नदी में लगाता नालों के मिलने की घटना भी नहीं थम रही है इस पर भी प्रशासन का कोई खास प्लान नहीं दिख रहा है,
शिवना की जलकुंभी गांधी सागर तक पहुंची
इधर नदी में जलकुंभी लगातार बढ़ती जा रही है, एक खुद अपना विस्तार इस तरह से करती जा रही है कि यह शिवना के बाद गांधी सागर तक पहुंच रही है, अगर देश में जलकुंभी के खतरे की बात करें तो इससे देश के लगभग पांच जलाशय जिन से विद्युत उत्पादन किया जा रहा था, जलकुंभी की समस्या के कारण आज बहुत बुरी स्थिति में है, जलकुंभी की समस्या आगामी समय में गांधी सागर और इसके साथ ही दूसरी नदियों एवं जलाशयों के भविष्य पर भी एक प्रश्न चिन्ह खड़ा करती है, विशेषज्ञों की मानें तो आगामी 15 वर्ष तक जलकुंभी एक बड़ा संकट बन सकता है, इसके बारे में बहुत सी स्थानीय संस्थाओं द्वारा नगर प्रशासन को जागरूक करने के बहुत प्रयास किए गए हैं परंतु इतने प्रयासों के बाद भी प्रशासन किसी भी प्रकार की कोई हरकत में नहीं आया है जिससे कि यह समस्या आगे और ज्यादा बढ़ने की आशंका जताई जा रही है।
लोगों में जागरूकता की कमी
अगर इस बारे में बात की जाए तो कुछ स्थानीय संस्थाओं एवं उनके सदस्यों के अलावा इस गंभीर समस्या पर किसी का भी ध्यान नहीं जा रहा है, कोई भी इसी गंभीरता को नहीं समझ रहा है ऐसे में जरूरत है कि हमें सामान्य लोगों को इसके नुकसान के बारे में बताना होगा, अभी आवश्यकता है कि इसे एक अभियान के रूप में लें ,ताकि शिवना नदी का भविष्य खतरे से बाहर आए, एवं शिवना नदी के एक धार्मिक स्थल होने के कारण इसकी चिंता करना और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है। ऐसे में आवश्यकता है कि लोगों में इसकी जागरूकता बढ़ाएं एवं इसे एक अभियान के तौर पर चलाया जाए।
आखिर जलकुंभी क्यों है, जलाशयों के लिए हैं खतरनाक
जलकुंभी एक बैल की तरह के पौधे होते हैं जो पानी के ऊपर चढ़ते हैं इससे सूरज की किरणें पानी के अंदर तक नहीं पहुंच पाती है, और इसके कारण पानी और हवा के बीच संपर्क कम होता जाता है जिससे पानी में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है पानी में ऑक्सीजन की कमी होने से इसमें मछलियां एवं जैविक जीव जो हमारे एवं पानी के स्वास्थ्य के लिए अच्छे होते हैं, कम ऑक्सीजन के कारण उनका दम घुटने लगता है और इसके बाद उनकी संख्या में कमी हो जाती है, विशेषज्ञों की मानें तो यह पानी के बहाव को 20 से 40% तक कम कर देती है जिससे पानी का ठहरा होता जाता है और इसमें अनेक प्रकार के कीड़े मकोड़े एवं मच्छर पनपने लगते हैं,
पानी के बहाव में कमी होने के कारण इसका बड़ा प्रभाव विद्युत उत्पादन पर भी पड़ता है जैसा कि हम आपको पहले बता चुके हैं कि इसकी समस्या के कारण देश के पांच विद्युत उत्पादन करने वाले जलाशय खतरे में है ऐसे में हम सभी का कर्तव्य है कि जलकुंभी को रोकने के लिए अभियान के स्तर पर काम शुरू किया जाए।