भगवान शिव की नगरी कुंडेश्वर लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र है जो टीकमगढ़ में स्थित है। देश के अन्य शिव मंदिरों से यहां मंदिर बिल्कुल अलग है और यहां भगवान शिव का प्रकोप सीधा देखने को मिलता है। इस मंदिर की मान्यता है कि यहां पर मौजूद शिवलिंग स्थापित नहीं किया गया है बल्कि यह शिवलिंग स्वयं एक कुंड में से प्रकट हुआ है। काफी दूर-दूर से और विदेशी भी यहां पर भगवान महादेव के दर्शन करने के लिए आते हैं। कहते हैं यहां पर जो शिवलिंग स्थापित है उसमें भगवान शिव श्याम निवास करते हैं क्योंकि यह स्वयं प्रकट हुई है। अगर आप भी शिव भक्त है तो यहां पर घूमने अवश्य जाना।
ओखली से प्रकट हुआ था यह शिवलिंग
कहा जाता है कि टीकमगढ़ में पहाड़ी पर रहने वाली धनती बाई नामक महिला ओखली में धान कूट रही थी।इसी दौरान ओखली से यह शिवलिंग प्रकट हो गया। मूसल लगते ही ठोस वस्तु से टकराने की आवाज आई और रक्त जैसा द्रव्य निकलने लगा। यह देखकर महिला ने बात लोगों को बताएं और बाद में सभी ने मिलकर यह जानकारी तत्कालीन राजा मदन वर्मन को बताई। उन्होंने जब उस स्थान पर खुदाई करवाई तो वहां से कुंडेश्वर महादेव का शिवलिंग निकला। काफी खुदाई के बाद भी जब शिवलिंग का छोर नहीं मिला तो राजा ने वही मंदिर निर्माण का फैसला कर लिया। बुंदेलखंड में कुंडेश्वर महादेव को 13वे ज्योतिर्लिंग का दर्जा दिया जाता है।
पुरानी कथाओं में भी है मंदिर का वर्णन
जानकारी के मुताबिक यह पता चला है कि इस मंदिर का वर्णन पौराणिक कथाओं में भी किया गया है। दुनिया का यह पहला शिवलिंग है जिसका आकार हर वर्ष एक चावल के बराबर बढ़ जाता है। महादेव का महीना माना जाने वाला सावन के पवित्र महीने में हर साल देशभर से हजारों शिवभक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं। इस स्थान का पौराणिक महत्व है। मंदिर के प्रधान पुजारी जमुना तिवारी कहते हैं कि पुराने समय में यहां पर बाणासुर की पुत्री भगवान शिव का पूजन करने आया करती थी। महा बानपुर से कुंड के रास्ते से यहां पहुंची थी। कालांतर में यही शिवलिंग पहाड़ी पर प्रकट हुआ है।