आप अगर भारत देश में रहते होंगे तो जरूर कोई ना कोई प्रथा आपके स्थानीय क्षेत्र में मानसून को बुलाने के लिए की जाती होगी। प्रतिवर्ष लोग अपने अपने स्थानीय प्रथा को अपनाते हैं और मानसून को बुलाते हैं लेकिन आपने कभी सोचा है कि क्या सच्चाई में भी इन्हीं प्रथाओं के कारण मानसून आता है या यह सिर्फ आपका अंधविश्वास है तो आइए हम आपको इसके बारे में जानकारी देते हैं और देश में अपनाई जाने वाली विभिन्न प्रकार की प्रथाओं के बारे में बताते हैं।
आखिर कब से शुरू हुई देश में मानसून बुलाने की प्रथाएं
आपको बता दें कि देश और दुनिया में कुछ वर्षों पहले सूखा पड गया था यांनि कि अकाल आ गया था।बात सन् 1876 की है जब भारत में भयंकर अकाल पड़ गया था।यह महामारी इतनी भयंकर थी कि सिर्फ़ 2 साल में 50 लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई थी।यह खत्म होने के बाद ज्यादा समय नहीं हुआ था कि देश को फिर भूखे का सामना करना पड़ गया।यह सूखा देश ही नहीं बल्कि मंदास और बाम्बे तक पहुंच गया था।कई समय तक यही दस्तूर चलता रहा और किसानों के हाल बेहाल हो गए। किसान रोजाना बड़ी उम्मीदों के साथ पानी का इंतजार करते थे लेकिन यह महामारी जाने का नाम ही नहीं ले रही थी। किसानों को समझ नहीं आ रहा था कि पानी को कैसे लाया जाए। किसानों को लगा कि उनके देवता उदास हो गए हैं।
देवताओं को खुश करने के लिए किसानों ने अपनाई थी अलग-अलग प्रथाएं
भूखमरी जाने का नाम ही नहीं ले रही थी और किसानों को लगने लगा कि उनके देवता उदास हो गए हैं और किसानों ने उदास देवताओं को खुश करने के लिए कुछ तरीके सोचे और उनको अपनाया गया। देवताओं के क्रोध को शांत करने के लिए देश के अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग प्रकार के नुस्खे अपनाए गए ताकि उनके देवता खुश हो कर बारिश कर दे। उस समय भूखमरी को मिटाने के लिए अपनाई गई प्रथा लोग आज भी मानसून को बुलाने के लिए अपना रहे हैं। बरसों से चली आ रही यह व्यवस्था आज भी देश में जिंदा है। आप जिस भी क्षेत्र में रहते होंगे जरूर वहां पर भी लोग मानसून को बुलाने के लिए कोई ना कोई प्रथा अपनाते होंगे।
मध्यप्रदेश में खेतों पर दाल बाटी बनाई जाती है जिसे उज्जैनी कहा जाता है
हमारे क्षेत्र मध्यप्रदेश में मानसून को बुलाकर बारिश करवाने के लिए किसान दाल बाटी और लड्डू बनाते हैं। इस दिन गांव के सभी लोग अपने खेतों पर ही भोजन करते हैं और भगवान की पूजा करते हैं।यह प्रथा भी उसी समय से चलती आ रही है।ऐसा करने से किसानों को लगता है कि उनके देवता खुश हो जाएंगे और इंद्र देव भी खुश होकर बारिश कर देंगे और सूखा नही पड़ेगा।अब तो अधिकतर जगहों पर इसी प्रथा को अपनाया जाता है।पदेश के सभी गांवों में आज भी यह प्रथा जिंदा है।
यह अजीब है- अविवाहित औरत को नग्न करके खेत की जुताई करवाना
यह प्रथा गोरखपुर में अकाल पड़ने के बाद अपनाई गई थी। वहां के लोगों को लगा कि उनके देवता उदास हो गए हैं और देवता को खुश करने के लिए वहां के लोगों ने तो बिल्कुल अलग ही तरीका अपनाया।और वहां के लोगों ने देवताओं को खुश करने के लिए एक अविवाहित औरत का इस्तेमाल किया और उसे नग्न करके उससे खेत की जुताई करवाई गई। हालांकि यह कार्य सभी के सामने नही किया जाता था।यह प्रकिया रात के अंधेरे में की जाती थी।इस प्रथा को अब बिल्कुल कम अपनाया जाता है। किसानों की यह भी मान्यता थी कि अगर खेत जोत रही महिला को कोई देखेगा तो उसको इसके लिए भयंकर अंजाम भुगतने पड़ेंगे। बिहार,यूपी और तमिलनाडु में यह प्रथा अभी भी बरकरार है।
यह भी अजीब-मेढक और मेंढकी की करवाई जाती है शादी
यह प्रथा भी आपको अजीब लगेगी लेकिन यह देश के राज्य असम में अभी भी अपनाई जाती हैं।इस प्रथा में वहां के लोग बारिश नही होने पर मेंढक और मेंढकी की शादी करवाते हैं ताकि देवता यह शादी देखकर पानी बरसा दे।यह प्रथा मध्यप्रदेश के भी कई हिस्सों में मनाई जाती है। इसके अलावा यह महाराष्ट्र और तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में पुरे तौर तरीके के साथ अपनाई जाती है।आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि वर्ष 2019 में जब शादी होने के बाद बारिश काफी ज्यादा होने लगी थीऔर रूकने का नाम ही नहीं ले रही थी। फिर लोगों ने बारिश को रोकने के लिए मेंढक और मेंढकी का तलाख भी करवाया था।इसी तरह आज भी देश के कई हिस्सों में यह प्रथा अपनाई जाती हैं।
कीचड़ में बच्चों का नहाना और तुंबा बजाना
छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके के लोग पांडवों मे से एक भीम को अपना देवता मानते हैं।यह लोग बारिश लाने के लिए भीम की ही पूजा करते हैं और इन्हें खुश करते हैं। वहां के लोगों के अनुसार जब भी भीम तुंबा बजाते हैं तो वहां पर बारिश हो जाती है। तुंबा वहा का एक यंत्र है। देश के बस्तर के नारायणपुर इलाके में मुड़िया जनजाति की भी एक अलग प्रथा है। यहां पर लोग किसी एक को अपना भीम प्रतिनिधि मानकर उसे कीचड़ और गोबर से ढक देते हैं। इससे लोगों को लगता है कि कीचड़ में दबे भीम प्रतिनिधि को सांस लेने में तकलीफ होंगी और भगवान इससे राहत के लिए बारिश कर देंगे। कुछ इलाकों में बच्चे कीचड़ में नहाते हुए इंद देव से प्राथना करते हैं और इंद्र देव इससे खुश होकर बारिश कर दैते है।
बारिश के लिए अपनाई गई कुछ और भी पथाए
1-झारखंड के सरायकेला में जमीन में बर्तन गाड़ कर बारिश का पूर्वानुमान लगाया जाता है। बहुत लोग नदी से पानी भर कर शिव मंदिर तक कलश यात्रा निकालते हैं। इन बर्तनों को रात को मंदिर में गाड़ दिया जाता है। अगले दिन पुजारी निकालकर बारिश का अनुमान लगाते हैं अगर बर्तन में से पानी का लेवल कम हो जाता है तो यह सूखे का संकेत हो जाता है। इसके बाद लोग देवताओं को खुश करने के लिए कांटो पर लेट कर माफी मांगते हैं।
2-तेलंगाना में लोग वनवास वाली प्रथा अपनाते हैं। गांव के लोग कुछ दिनों के लिए जंगल में रहते हैं कहते हैं कि हमें जंगल में देखकर भगवान खुश हो जाएंगे और बारिश कर देंगे बारिश कर देंगे।
3-तमिलनाडु में बारिश को लाने के लिए एक गीत प्रसिद्ध है जिसे नल्लाथंगल कहा जाता है। अगर उनके वहां सूखे की स्थिति हो जाती है तो यह लोग इस गीत को 10 रातों तक गाते हैं और कहते हैं कि यह गीत इतना अच्छा है कि भगवान इसे सुनकर खुश हो जाते हैं और बारिश कर देते हैं।
4-कर्नाटक और गुजरात के कुछ मंदिरों में पानी से भरे बर्तनों में बैठकर पंडित वैदिक मंत्र पढ़ते हैं। उनका मानना है कि इससे भगवान अच्छी बारिश कर देंगे और तापमान में भी कमी आएगी।
यह लोगों का अंधविश्वास है लेकिन इनका प्रकृति से कुछ ना कुछ संबंध अवश्य है
मानसून को बुलाने के लिए लोगों द्वारा की गई है सभी प्रथाएं एक प्रकार से अंधविश्वास है लेकिन इन कथाओं का हमारी प्रकृति के साथ जरूर कुछ ना कुछ कनेक्शन है। इन्होंने प्रकृति के साथ गहरा संबंध बना रखा है। यह प्रथाएं सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के विभिन्न देशों में भी अपनाई जाती है। जैसे थाईलैंड की बात की जाए तो वहां पर लोग बारिश के लिए बिल्ली पर पानी फेंकते हैं। हालांकि प्रथा में अब बदलाव किया गया है और नकली बिल्ली का इस्तेमाल करते हैं।