कोरोना की दूसरी लहर में बच्चों पर भी घातक दुष्प्रभाव देखने को मिल रहा है। कोरोना संक्रमण के बाद बच्चों में मल्टी सिस्टम इन फिलामेंट्री सिंड्रोम इन चाइल्ड नामक बीमारी के मामले सामने आ रहे हैं। कई बच्चे अस्पतालों में भर्ती है तो कुछ बच्चों की मौत हो चुकी है। इस बीमारी से शिकार हुए बच्चों को करुणा से सही होने के बाद इस रोग के लक्षण नजर आते हैं। बच्चों में सामान्य उल्टी दस्त से शुरू होने वाला यह रोग बच्चों को अस्पताल पहुंचा देता है। समुचित उपचार नहीं मिलने की स्थिति में बच्चों की मौत भी हो जाती है। फिलहाल देश में गुजरात मध्य प्रदेश पंजाब सहित कुछ अन्य राज्यों में कई बच्चे इस रोग से पीड़ित मिले हैं। बच्चों का उपचार प्राइवेट और सरकारी अस्पतालों में जारी है।
15 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए घातक है यह रोग
कोरोना के बाद रिकवर हुए 7 से 15 साल के बच्चों में यह रोग अधिक हो रहा है। एंटीबॉडी बनाने के बावजूद स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव और कोरोनावायरस माता-पिता के बच्चों पर रोग की आशंका ज्यादा जताई जा रही है। जिन बच्चों के माता-पिता को कोरोना का है उनके बच्चों पर यह बीमारी ज्यादा असर बता सकती है।
बीमारी को कैसे पहचाने और इसके क्या उपाय हैं
टेस्ट के नतीजे भले ही नेगेटिव आए लेकिन रोग की आशंका होती है। इसलिए ऐसी स्थिति में बच्चों का डी डाइमर टेस्ट भी जरूरी है। अगर वैल्यू बड़ी हुई आए तो एमआईएससी की पुष्टि हो जाती है। इसके लक्षण में 3 दिन से ज्यादा तेज बुखार आना और पेट में दर्द होना है, टाइफाइड न्यूमोनिया की शिकायत हो ना, उल्टी होना और गर्दन में दर्द होना, आंखों और जीभ का लाल होना, हाथ पैर में सूजन होना और सांस लेने में दिक्कत होना, भ्रम और चिड़चिड़ापन होना। अगर किसी को यह बीमारी हो जाती है तो घबराने की आवश्यकता नहीं है इसके लिए आपको समय पर उपचार लेते रहना जरूरी है। डॉक्टरों के अनुसार फ्लू और न्यूमोकोकल का टीका जरूरी है। ठीक होने के बाद भी लगभग 1 वर्षों तक बच्चों की देखभाल करना जरूरी है।
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