जिले में समर्थन मूल्य पर गेहूं चना मसूर व सरसों की खरीदी पूरी हो गई है। डेढ माह चली खरीदी इस बार किसानों का दिल नहीं जीत पाई। सभी लौंडिया और सभी बाजार पूरी तरीके से बंद पड़े हैं जिस कारण किसान अपनी उपज मंडी में भी नहीं ले जा सकता है। किसानों को फसल ऋण जमा कराने से लेकर खरीफ सीजन के लिए खेतों को बोवने के लिए तैयार करना है, फिर भी वह पंजीयन के बाद भी ऊपर समर्थन पर बेचने के बजाय घरों में लेकर बैठे हैं। बाजार व मंडियों में समर्थन से अधिक दाम इसका एकमात्र कारण है। सरकार ने इस बार जिले से 145.33 करोड़ का गेहूं और 8.89 करोड़ का चना समर्थन मूल्य पर खरीदा है।
सरसों और मसूर की खरीदी शून्य रही
इस बार जिले से सरसों और मसूर की खरीदी बिल्कुल सुनने रही है। पिछले साल चना रकबा और उत्पादन अधिक होने के कारण जिले में रिकॉर्ड तोड़ गेहूं की खरीदी हुई थी, लेकिन इस बार खरीदी के आंकड़े आधे मुंह गिर गए और पंजीयन के बाद भी आधे किसान केंद्रों पर नहीं पहुंचे। प्रशासन ने इस बार पिछले साल का रिकॉर्ड तोड़ खरीदी देखकर प्रशासन ने इस बार ऊपर जन्म के व्यापक इंतजाम किए थे, लेकिन कोई काम नहीं आया। जिले में समर्थन मूल्य पर हुई खरीदी में उपज की आवक इस साल कमजोर ही रही। खरीदी शुरू होने से पहले प्रशासन द्वारा भंडारण के लिए पर्याप्त गोदाम एवं तैयारियां की गई थी, लेकिन खरीदी को किसानों का पर्याप्त समर्थन नहीं मिलने के कारण गोदाम खाली ही रह गए।
जितना तय किया था लक्ष्य उससे आधी भी नहीं हुई खरीदी
समर्थन मूल्य पर खरीदी समाप्त हो गई है। अंतिम दिन जिले में 150 मीटर टन गेहूं की खरीदी हुई थी। इसके चलते कुछ आंकड़ा बढ़ गया लेकिन इस साल समर्थन मूल्य पर खरीदी में प्रारंभ से अंतिम दिन तक किसानों ने रुचि नहीं ली, यही कारण रहा कि गेहूं खरीदी के लिए जिले में तय किए गए लक्ष्य की आधी भी खरीदी नहीं हो पाई है। चना खरीदी के लिए 30000 से अधिक किसानों ने पंजीयन करवाया था लेकिन 1000 किसानों ने भी चना नही बेचा। सरसों और मसूर की खरीदी जिले में इस साल बिल्कुल भी नहीं हो पाई कोरोना के बावजूद डेढ़ माह से अधिक समय तक चली खरीदी में प्रारंभ से अंतिम दिन सन्नाटा खत्म ही नहीं हुआ।