पूरी खबर:कोरोनावायरस क्या है,यह कैसे बन जाता है ब्लैक फंगस, दवाइयां और वैक्सीन कैसे हमारे शरीर को सुरक्षित रखती है, जानिए इसके बारे में सब कुछ

 

आखिर कोरोनावायरस कैसे काम करती है दवाइयां और कोरोना संक्रमित हो ब्लैक फंगस क्यों हो जाता है?

•जानिए रिमेडी सेवर कैसे काम करती है

•कोरोनावायरस के बाद ब्लैक फंगस कैसे हो जाता है

•डेक्सामेथासोन. (Dexamethasone) दवाई

कोरोनावायरस  में कैसे मदद करती है

कोरोनावायरस कैसे करता है शरीर के अंदर प्रवेश?

कोरोनावायरस शरीर के अंदर कहीं से भी प्रवेश नहीं कर सकता वह सिर्फ ना क्या मुंह से ही शरीर के अंदर प्रवेश कर सकता है और सिर्फ फेफड़ों को ही नुकसान पहुंचा सकता है इसके अलावा कोरोनावायरस शरीर में कहीं से भी प्रवेश नहीं कर सकता है। अब कोरोनावायरस में स्पाइक प्रोटीन(spike protein) होते हैं जो वायरस के ऊपर कांटे नुमा आकृति में होते हैं। जब कोरोनावायरस नाक से शरीर के अंदर प्रवेश कर जाता है तो वह फेफड़ों तक पहुंचता है , फेफड़ों में रिसेप्टर लगे हुए होते हैं जो उनके बराबर आकृति वाली हर चीज को अपने अंदर लेने में सक्षम होते हैं इसी के मदद से कोरोनावायरस शरीर के अंदर जाते हैं। अगर इससे पहले अपने वैक्सीन ली है तो वैक्सीन आपके शरीर में कोरोनावायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी पैदा कर देगी जो कोरोनावायरस के स्पाइक प्रोटीन को ब्लॉक कर देगी जिससे कोरोनावायरस फेफड़ों के अंदर नहीं जा पाएगा और वह फेफड़ों के बाहर ही खत्म हो जाएगा। अगर कोरोनावायरस शरीर के अंदर जाएगा तो वह अवश्य ही अपनी संख्या बढ़ाएगा।

कोरोनावायरस शरीर के अंदर अपनी संख्या कैसे बढ़ाता है?

कोरोनावायरस शरीर के अंदर जाकर राइबोसोम्स(Ribosomes) के पास जाता है अब राइबोसोमस किसी भी चीज की संख्या शरीर में बहुत ही तेजी से बढ़ाता है, यह कोरोनावायरस को बहुत तेजी से बढ़ने में मदद करता है, जब यह बढ़ जाता है तो फेफड़ों में अपनी संख्या बढ़ाने लगता है जिससे मरीज को सांस लेने में तकलीफ होने लगती है और मरीज की मौत हो जाती है।

कैसे काम करती है रेमेडीसीविर ?

कोरोनावायरस एक आर एन ए(R.N.A.) वायरस है, आर एन ए सिंगल हेलिक्स होता है,

इसमें न्यूक्लिबेस होते हैं, और एक शुगर फास्फेट होता है,

रिमेडसिविर वायरस को कमजोर करने के लिए होती है, यह वायरस में चार न्यूक्लिबेस में से एक की डुप्लीकेट होती है, जिस का फार्मूला GS-441524 जब इसे शरीर में इंजेक्शन से डाला जाता है तो यह एक न्यूक्लिबेस राइबोसोम्स(Ribosomes) के पास जाती है और कोरोनावायरस के एक न्यूक्लिबेस की जगह पर लग जाती है और कोरोनावायरस में डुप्लीकेट कॉपी की तरह काम करने लगती है इससे वायरस आगे जाकर कमजोर पड़ जाता है और धीरे-धीरे खत्म हो जाता है।

वायरस खतरनाक होने की वजह से इसका न्यूक्लियस जिस का फार्मूला 3-5 EXO Ribo Nuclear डुप्लीकेट कॉपी को पहचान लेता है और इसे हटाने लगता है पर इस समय डॉक्टर रेमेडीसिविर के ज्यादा डोज देने लगते हैं जिससे डुप्लीकेट कॉपी ज्यादा संख्या में बनने लगती है इसके बाद वायरस को एक भ्रम होता है कि यही असली कॉपी है और आगे जाकर यह खत्म हो जाता है।

अब इस इंजेक्शन के कुछ हानिकारक प्रभाव भी है। 

जिसमें इसे लेने से आरबीसी कम होती है, ब्लड प्रेशर की प्रॉब्लम भी बढ़ती है।

असल में इस दवा का आविष्कार बोला वायरस को खत्म करने के लिए हुआ था।

रेमेडीसिविर को खरीदते समय बरतें सावधानी

कोरोनावायरस के चलते तेजी से कोरोनावायरस से होने वाली मौतों का आंकड़ा बड़ा है, इसी के साथ जब लोगों को रेमेडीसिविर इंजेक्शन के बारे में पता चला तो इसकी कालाबाजारी होने शुरू हो गए, बहुत सारे मामलों में तो नकली रेमेडीसिविर इंजेक्शन को भी बेचा गया।

इसीलिए जब भी आप इस इंजेक्शन को खरीदने जाए तो पाउडर वाला इंजेक्शन ही खरीदें क्योंकि इसमें मिलावट की संभावना बहुत ही कम हो जाती है जबकि दूसरे इंजेक्शन में पानी या ग्लूकोज भरकर बेचा जा सकता है।

साइटोकाइनिन(Cytokinen strom)

जब भी हमारे शरीर पर किसी वायरस या चोट या किसी भी चीज से हमला होता है जिससे हमारे शरीर को नुकसान पहुंचाया जा सकता है, तो हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है जो वायरस या चोट से हुए नुकसान को भरने का काम करती है जिससे हमारे शरीर को कोई नुकसान ना हो, अगर वायरस या चोट हमारे शरीर की एंटीबॉडी यार रोग प्रतिरोधक क्षमता पर हावी होती है तो उसे इन्फेक्शन (infection)कहा जाता है।

या हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता वायरस या फिर चोट पर हावी होती है तो उसे इन्फ्लामेशन(Inflammation) कहा जाता हैं। जब इन्फ्लामेशन की प्रक्रिया होती है तो इसके कुछ संकेत होते हैं, जैसे जहां पर चोट यह वायरस का हमला हुआ है, वहां पर दर्द होगा, वह जगह गरम हो जाएगी, वह जगह लाल पढ़ने लगेगी, जिस अंग पर यह प्रक्रिया होगी वह काम करना बंद कर देगा या काम करने में कठिनाई होगी, जब हमारे शरीर  की रोग प्रतिरोधक क्षमता रोगाणुओं से लड़ती है तो यह संकेत देती है।

असल में जब हमारे शरीर पर कोरोनावायरस जैसे वायरस का का हमला होता है तो हमारे शरीर में एंटीबॉडी को एक एक मैसेज भेजा जाता है, साइटोकाइनिन(Cytokinen strom) जिसे 

 कहते हैं, कभी-कभी यह बहुत ज्यादा मात्रा में उत्पन्न हो जाता है जिसकी वजह से वायरस की संख्या कम होने के कारण यह हमारे ही शरीर को नुकसान पहुंचाना शुरू कर देता है।

डेक्सामेथासोन. (Dexamethasone) दवाई कोरोनावायरस  में कैसे मदद करती है?

यह एक स्टेराॅइट है, जो ज्यादा सीरियस मरीज को इंजेक्शन के रूप में दी जाती है, नहीं तो आमतौर पर टेबलेट या गोली के रूप में दी जाती है। जब साइटोकाईनिन स्ट्रोम(Cytokinen strom)   आता है तो उससे हमारे शरीर को ही नुकसान होता है इसीलिए डॉक्टरों द्वारा एक इंजेक्शन दिया जाता है जिससे हमारे शरीर में साइटोकाइनिन को शांत किया जा सके, और हमारे में मौजूद रोग प्रतिरोधक क्षमता से ही वायरस को खत्म कर दिया जाए ऐसे समय में हमारे शरीर में साइटोकाईनिन स्ट्रोम एक दवाई के माध्यम से कम किया जाता है, जिससे कि हमारे शरीर को नुकसान ना पहुंचे,डेक्सामेथासोन. (Dexamethasone) यह हमारे शरीर में साइटोकाईनिन स्ट्रोम को कम करने में मदद करती है, पहले इस इंजेक्शन के माध्यम से स्ट्रोम को काम किया जाता है उसके बाद इसे रेमेडीसिविर से वायरस को खत्म कर दिया जाता है, अक्सर यह देखा जाता है कि मरीज को यह इंजेक्शन शुरुआती दिनों में ही दे दिया जाता है जिससे कि उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत ज्यादा कम हो जाती है ऐसे में एम्स के डायरेक्टर संदीप गुलेरिया जी का कहना है कि मरीज को यह इंजेक्शन देने में ज्यादा जल्दी ना करें मरीज खुद भी इस इंजेक्शन बना लें इसे डॉक्टर की सलाह पर ही दिया जाना चाहिए, क्योंकि इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत ज्यादा कम हो जाती है।

कोरोनावायरस से ब्लैक फंगस कैसे होता है?

ब्लैक फंगस यह एक आम तरह का ही फंगस है, जो एक आम फंगस की तरह ही होता है जो किसी भी नमी वाली जगह जैसे लकड़ी के टुकड़े, घास -फूस, सूखी पत्तियां, और रोटी ब्रेड, या कोई भी खाने की चीज पर लग सकता है। यह आमतौर पर इतना कमजोर होता है कि इसे हमारे शरीर का पसीना पसीना भी मार सकता है, परंतु कोरोनावायरस के समय इंजेक्शन से हमारे शरीर की एंटीबॉडी कम हो जाती है, तो इसका खतरा बढ़ जाता है, कोरोनावायरस के समय जब मरीज के मुंह पर ऑक्सीजन मास्क लगा होता है, तो उसमें नमी होती है जहां पर वह पैदा हो सकता है और वहीं से मरीज के शरीर में प्रवेश करता है और मरीज की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत ज्यादा कम हो जाने के कारण मरीज का शरीर इसे नहीं मार सकता और यह शरीर पर हावी हो जाता है। इसके शुरुआती लक्षण दिखने पर ही इसे कंट्रोल किया जाना चाहिए।

बात करें इसके शुरुआती लक्षण की जो इसके शुरुआत में मरीज के

• नाक से हल्के भूरे रंग का पानी निकलने लगता है  

•नाक में हल्के हल्के धब्बे होने लगते है

 •खांसी होती है उल्टी होती है कभी-कभी उल्टी में खून भी आ सकता है

 •आंख लाल हो जाती है 

 •आंखों के आगे तक सूजन भी हो जाती है

इसके शुरुआती लक्षण पहचान कर ही डॉक्टर की सलाह पर ट्रीटमेंट देना शुरू कर देना चाहिए नहीं तो यह बहुत ज्यादा हानिकारक हो सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *