सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) कृष्णमूर्ति वी सुब्रमण्यन का मानना है कि स्वास्थ्य क्षेत्र को निजी क्षेत्र के भरोसे बिल्कुल भी नहीं छोड़ा जा सकता है। भारत देश की बात की जाए तो यहां पर निजी अस्पतालों की इलाज की गुणवत्ता सरकारी अस्पतालों से बेहतर नहीं है, लेकिन वहां पर इलाज करवाना काफी महंगा पड़ता है।सीईए का कहना है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकार को आगे आना होगा और स्वास्थ्य सेवा के लिए एक नियामक बनाने की भी आवश्यकता है।
नियमों के तहत निजी अस्पतालों पर रखा जाएगा नियंत्रण
स्वास्थ्य सेवा के लिए नियामक बनने से निजी क्षेत्र के अस्पतालों पर नियम के तहत नियंत्रण रखा जा सकेगा। सुब्रमण्यम ने कहा कि आप अधिक खर्चा करके अगर इलाज करवाते हैं तो आपको बेहतर इलाज मिलता है। संसद में पेश आर्थिक सर्वे के मुताबिक, देश में समान बीमारी के लिए समान इलाज के लिए निजी अस्पताल सरकारी अस्पतालों के मुकाबले कई गुना ज्यादा पैसा वसूलते हैं। जबकि दोनों अस्पतालों में इलाज एक जैसा ही किया जाता है। अधिक खर्चा होने के बावजूद निजी अस्पतालों में इलाज की गुणवत्ता सरकारी अस्पतालों से कम ही पाई गई है। सर्वे में कहा गया है कि इलाज को लेकर पर्याप्त जानकारी नहीं होने से लोग सही तरीके से फ़ैसला नहीं कर पाते हैं।इसी चीज का फायदा नीजी अस्पताल उठाते हैं।
नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है निजी कंपनियां
सर्वे में कहा गया है कि स्वास्थ्य क्षेत्र में अनियंत्रित तरीके से कार्य कर रही है निजी कंपनियां नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक, शहरी इलाकों में अस्पताल में भर्ती होने वाले 65 फीसद मरीज निजी अस्पतालों में ही भर्ती होते हैं। आपको बता दें कि भारत देश में अधिकतर लोगों की मौत अस्पतालों तक अपर्याप्त पहुंच के कारण नहीं बल्कि घटिया किस्म के इलाज के कारण होती है। एक ही मरीज के अस्पताल में दोबारा भर्ती होने की दर भी अस्पतालों में ज्यादा है। अस्पताल में दोबारा भर्ती होने पर मरीजों को अस्पताल में अधिक समय तक रहना पड़ता है। किसी भी मरीज के अस्पताल में दोबारा भर्ती होने पर उस पर काफी दबाव पड़ता है। निजी अस्पतालों में कैंसर का इलाज सरकारी अस्पतालों के मुताबिक 3.7 गुना ज्यादा लगता है।और निजी अस्पतालों की इलाज व्यवस्था सरकारी अस्पतालों से अच्छी भी नहीं है।