मंदसौर जिले को काले सोने का गढ़ माना जाता है। मंदसौर जिला हर बार काला सोने की पैदावारी में रिकॉर्ड बनाता है लेकिन इस बार प्राकृतिक कारणों और रोग के प्रकोप के कारण किसान व विभागीय अमला फसल को देखकर उत्पादन प्रभावित होने की आशंका जता रहा है। जिले में लहलहा थी अफीम की फसल पर सफेद मस्सी ग्रहण लगा रही है। इसी कारण अबकी बार काला सोना के नाम से जानी जाने वाली फसल अफीम के उत्पादन पर भी प्रभाव पड़ रहा है।अफीम ने मौसम की मार जली तो अब फसल में लग रहा है।
इस बार अफीम का पट्टा भी देरी से मिला है
इस बार अफीम काश्तकारों को कभी मौसम ने धक्का दिया तो कभी कोविड-19 के कारण पट्टे मिलने में देरी हुई जिसके कारण अब फसल पर रोग आ गए हैं और परेशानी भी बढ़ गई है।वर्तमान में तो सफेद फूलों के बीच डोडे दिख रहे हैं लेकिन रोग से बचाने के लिए किसान खेतों पर दवा का छिड़काव करने में लगे हुए हैं। अफीम की रखवाली के लिए किसानों को रात दिन खेत पर रुकना पड़ रहा है। नीलगाय से लेकर पक्षियों से तो चोरी के भय के कारण भी अफीम के खेत पर चारदीवारी तैयार करने के साथ-साथ उसके ऊपर नेट लगाकर उसकी रखवाली करनी पड़ रही है। जिले के कुछ गांवों में चीरे लगना शुरू हो गए हैं और बाकी बचे हुए गांव में भी शुरू होने ही वाले हैं। इस सीजन में अफीम की सुरक्षा ही किसानों के लिए बड़ी चुनौती बन गई है।
अभी मार्फिन के आधार पर पट्टे दिए जाते हैं
अफीम काश्तकारों को नारकोटिक्स विभाग द्वारा दिए जाने वाले पदों का आधार पहले औसत था लेकिन अब मार्फिन के आधार पर किसानों को अफीम के पट्टे दिए जाते हैं। ऐसे में कई किसानों के पट्टे औसत से मार्फिन तक आने में कट गए हैं। किसानों की 10 आरी के पट्टे देने की चली आ रही है लेकिन 6 आरी के पट्टे ही सबसे अधिक है।इस बार उत्पादन प्रभावित होने के कारण अनेक किसान मार्फिन पूरा करने की चुनौती के बीच पट्टा कटने की आशंका के कारण चिंता में है। ऐसे में अफीम की सुरक्षा के लिए किसान बिना जोखिम लिए पूरी मेहनत कर रहे हैं। कई कारणों के चलते अफीम उत्पादन प्रभावित भी हो रहा है। अफीम काश्तकार अब अपनी फसल को दवा का छिड़काव कर के सफेद मस्सी के रोग से बचाने में लगे हुए हैं। जिले में अफीम की फसल पर अब सफेद मस्सी का रोग बढ़ने लग गया है। काश्तकार पहले ही अफीम को लेकर परेशान हैं। इस बार अफीम के पट्टे लेट मिलने के कारण बुआई भी लेट हुई है।