देश के राष्ट्रपिता और साबरमती के संत महात्मा गांधी ने समूचे देश को चरखे से स्वरोजगार की राह दिखाई थी। गांधी जी ने भी लोगों को आत्मनिर्भर बनने के लिए चरखा चलाकर स्वरोजगार की राह दिखाई थी। उसी चरखे से आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने स्वरोजगार, स्वाभिमान और स्वदेशी का सपना देश के युवाओं को दिखाया है। 5 साल पहले उन्होंने मध्य प्रदेश में सागर जिले के बाहरा गांव में चरखा और हथकरघा केंद्र की नींव रखी थी और उसके द्वारा तैयार किए गए कपड़े को श्रमदान नाम दिया था।
चरखा बना सैकड़ों लोगों के रोजगार का जरिया
आज के समय में यही चरखा और हथकरघा देश के 15 गांव में सैकड़ों युवाओं के रोजगार का जरिया बन गया है। चरखे द्वारा तैयार की गई खादी स्वदेशी होने का स्वाभिमान जगा रही है और बेरोजगारी से जूझ रहे युवाओं को आत्मनिर्भरता का गुमान करवा रही हैं। दरअसल महात्मा गांधी के खादी से स्वरोजगार के मंत्र को जैन तीर्थ क्षेत्र बारहा में 2015 में आचार्य श्री विद्यासागर ने साकार किया। महाकवि पंडित भुरामल सामाजिक संस्था सहकार के नाम से हथकरघा केंद्र शुरू करवाया। शुरुआत 10 हथकरघा और 20 चरखो से की गई थी। गांव के युवाओं को प्रशिक्षण दिया गया अब इस केंद्र में 120 हथकरघा संचालित हो रहे हैं।
प्रतिदिन हो जाती है 300 से ₹700 तक की कमाई
चरखो और हद करके पर काम करने वाले लोगों की प्रतिदिन 300 से ₹700 तक की कमाई हो जाती है। गांव के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती है लेकिन कई बेरोजगार युवाओं को इस हथकरघा केंद्र से जोड़ा गया है। इस केंद्र की सफलता के बाद दूसरे चरण में अक्षय तृतीया पर 2016 को कुंडलपुर, अशोकनगर मंडला और डिंडोरी मैं केंद्र शुरू किए गए। इसके बाद 2017 में मुंबई में मुंब्रा के अलावा महाराष्ट्र के सिरडशाहपुर , कुंथलगिरी,पपोराजी और अजंता एलोरा में हथकरघा केंद्रों की शुरुआत की गई। इसके अगले वर्ष छत्तीसगढ़ के जगदलपुर, कर्नाटक के बेलगांव के सदलगा में केंद्र शुरू हुए।